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शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

इक नयी पौध अब.....

इक नयी पौध अब उगाये तो.
कोई बरगद की जड़ हिलाए तो.


अपना चेहरा जरा दिखाए तो.
भेड़िया फिर नगर में आये तो.


बादलों की तरह बरस पड़ना
आग घर में कोई लगाये तो.


लोग सड़कों पे निकल आयेंगे
एक आवाज़ वो लगाये तो.


उनके कानों पे जूं न रेंगा पर
मेरी बातों पे तिलमिलाए तो.


फिर खुदा भी बचा न पायेगा
पाओं इक बार लडखडाये तो.


-----देवेंद्र गौतम 

जो नदी चट्टान से......

जो नदी चट्टान से निकली नहीं है.
वो समंदर से कभी मिलती नहीं है.


हम हवाओं पे कमंदें डाल देंगे
ज़ुल्म की आंधी अगर रुकती नहीं है.


रास आ जाती हैं बेतरतीबियां भी
जिंदगी जब चैन से कटती नहीं है.


बादलों की ओट में सिमटा है सूरज
रात ढलकर भी अभी ढलती नहीं है.


अपने अंदर इस कदर डूबा हूं मैं
अब किसी की भी कमी खलती नहीं है.

---देवेंद्र गौतम