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शनिवार, 15 सितंबर 2012

लुटेरों की निगहबानी में रहना

लुटेरों की निगहबानी में रहना.
तुम अपने घर की दरबानी में रहना.

अगर इस आलमे-फानी में रहना.
तो बनकर बुलबुला पानी में रहना.

शरीयत कौन देता है किसी का
नमक बनकर नमकदानी में रहना.

यही हासिल है शायद जिंदगी का
हमेशा लाभ और हानि में रहना.

ये रहना भी कोई रहना है यारब!
जहां रहना परेशानी में रहना.

बनाना मछलियों का एक दस्ता
मगर से वैर कर पानी में रहना.

कुछ ऐसे दोस्ती अपनी निभाना
पड़े दुश्मन को हैरानी में रहना.

तुम्हारे शह्र में रहने से अच्छा
कहीं जाकर बयाबानी में रहना.

----देवेंद्र गौतम