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बुधवार, 24 अप्रैल 2013

हर तरफ कागज के फूलों की नुमाइश हो रही है


मौसमों की आजकल हमपर नवाजिश हो रही है.
रोज आंधी आ रही है, रोज बारिश हो रही है.

रात-दिन सपने दिखाये जा रहे हैं हम सभी को
बैठे-बैठे आस्मां छूने की कोशिश हो रही है.

शक के घेरे में पड़ोसी भी हैं लेकिन दरहकी़कत
घर के अंदर घर जला देने की साजिश हो रही है.

मौत भी क्या-क्या तमाशे कर रही है जा ब जा अब
जिन्दगी की हर कदम पर आजमाइश हो रही है.

जंगलों में आजकल इन्सान देखे जा रहे हैं
और शहरों में दरिंदों की रहाइश हो रही है.

अब यहां कुदरत की खुश्बू की कोई कीमत नहीं है
हर तरफ कागज के फूलों की नुमाइश हो रही है.

---देवेंद्र गौतम