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गुरुवार, 4 नवंबर 2021

ग़ज़लः साहब की हर बात हवाई होती है

 

हर बंदी के नाम रिहाई होती है.

साहब की हर बात हवाई होती है.

 

पहले चोंच लड़ाते हैं इक दूजे से

फिर आपस में हाथापाई होती है.

 

कौन गरीबों की फरियाद सुने आखिर

दौलतवालों की सुनवाई होती है.

 

एक-एक कर सब बाराती लौट चुके

देखें कब दुल्हन की विदाई होती है.

 

ऐसे लम्हे भी आते हैं जीवन में

ऊपर पर्वत नीचे खाई होती है.

 

बाहर-बाहर ईमां की बातें करते

अंदर-अंदर खूब कमाई होती है.

-देवेंद्र गौतम

 

 

3 टिप्‍पणियां:

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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