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गुरुवार, 17 मई 2012

रास्ते में कहीं उतर जाऊं?

रास्ते में कहीं उतर जाऊं?
 घर से निकला तो हूं, किधर जाऊं?

पेड़ की छांव में ठहर जाऊं?
धूप ढल जाये तो मैं घर जाऊं?

हर हकीकत बयान कर जाऊं?
सबकी नज़रों से मैं उतर जाऊं?

जो मेरा  जिस्मो-जान था इक दिन
उसके साये से आज डर जाऊं?

जाने वो मुझसे क्या सवाल करे
हर खबर से मैं बाखबर जाऊं.

जिसने  रुसवा किया कभी मुझको
फिर उसी दर पे लौटकर जाऊं?

क्या पता वो दिखाई दे जाये
दो घडी के लिए ठहर जाऊं.

वो भी फूलों की राह पर निकले
मैं भी खुशबू से तर-ब -तर जाऊं.

अपना चेहरा बिगाड़ रक्खा है
उसने चाहा था मैं संवर जाऊं.

मैंने आवारगी बहुत कर ली
सोचता हूं कि अब सुधर जाऊं.

----देवेंद्र गौतम



17 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत खूब ...
    हर शेर लाजवाब ....!!

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  2. बहुत उम्दा शेर निकाले हैं सभी...

    जवाब देंहटाएं
  3. रवीन्द्र नाथ सिन्हा17 मई 2012 को 10:09 am बजे

    प्रिय देवेन्द्र गौतम जी,
    आपकी यह नई गज़ल बहुत सुन्दर लगी | हम आशा करते हैं की आप आगे भी इसी प्रकार अपनी नई नई गज़लों से हम सभी को अनुग्रहीत करते रहेंगे |
    धन्यवाद |
    रवीन्द्र नाथ सिन्हा |

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  5. गौतम जी आपकी गजलों का ज़वाब नहीं छोटी बहर बड़ी लहर चला देती है .

    जवाब देंहटाएं
  6. गौतम जी आपकी गजलों का ज़वाब नहीं छोटी बहर बड़ी लहर चला देती है .

    जवाब देंहटाएं
  7. क्या पता वो दिखाई दे जाये
    दो घडी के लिए ठहर जाऊं.

    SUBHAN ALLAH...KITNI MASOOMIYAT HAI IS SHER MEN...LAJAWAB GHAZAL...DAAD KABOOL KAREN.


    NEERAJ

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से आभार।

    जवाब देंहटाएं
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    जवाब देंहटाएं
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    जवाब देंहटाएं
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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