tag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post6885444109115478500..comments2024-03-05T10:51:42.292-08:00Comments on ग़ज़लगंगा.dg: सिलसिला रुक जाये शायद.....devendra gautamhttp://www.blogger.com/profile/09034065399383315729noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-18879865225849318982011-08-04T20:48:54.196-07:002011-08-04T20:48:54.196-07:00पेड़, पौधे और परिंदे सब के सब खामोश हैं
जब से आया ...पेड़, पौधे और परिंदे सब के सब खामोश हैं<br />जब से आया है यहां मौसम समंदर पार का.<br />वाह,खूब शेर कहा है आपने.<br />पूरी ग़ज़ल बढ़िया है.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-39424402577117846112011-08-04T16:47:13.766-07:002011-08-04T16:47:13.766-07:00मार्क्स, गांधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
सबपे ...मार्क्स, गांधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का<br />सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.<br /><br />गज़ब गज़ब...मुबारकबाद इस उम्दा गज़ल के लिए...Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-4453233186361464842011-06-25T13:16:45.069-07:002011-06-25T13:16:45.069-07:00बैठे-बैठे देख लेते हैं ज़माने भर का हाल
मुंतजिर रह...बैठे-बैठे देख लेते हैं ज़माने भर का हाल<br />मुंतजिर रहते हैं फिर भी सुब्ह के अखबार का.<br /><br />पेड़, पौधे और परिंदे सब के सब खामोश हैं<br />जब से आया है यहां मौसम समंदर पार का.<br />bahut acchi ghazal<br /><br />good wishesनीलांशhttps://www.blogger.com/profile/06348811803233978822noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-12290576597830734912011-06-15T00:01:52.430-07:002011-06-15T00:01:52.430-07:00मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
सबपे ...मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का<br />सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.<br /><br />बहुत बढ़िया बात कही है सटीक एकदम ..खूबसूरत गज़लसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-26028474264092289312011-01-10T10:00:47.575-08:002011-01-10T10:00:47.575-08:00शुक्रियाशुक्रियाdevendra gautamhttps://www.blogger.com/profile/09034065399383315729noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-11174864144927705542011-01-09T18:35:12.468-08:002011-01-09T18:35:12.468-08:00सिलसिला रुक जाये शायद आपसी तकरार का
ग़ज़ल में, यह...सिलसिला रुक जाये शायद आपसी तकरार का<br /><br />ग़ज़ल में, यह मिसरा अपनी बात<br />कहे देना चाहता है .... !<br />और<br />मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का<br />सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.<br />हालात को जी कर कहे गए शेर<br />बिलकुल इसी तरह के कामयाब शेर हुआ करते हैं ..वाह !!<br />पूरी ग़ज़ल<br />आपकी उम्दा सोच की जानिब इशारा कर रही है जनाब .<br />मुबारकबाद .daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-30980763316907759832011-01-08T10:49:26.878-08:002011-01-08T10:49:26.878-08:00शुक्रियाशुक्रियाdevendra gautamhttps://www.blogger.com/profile/09034065399383315729noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-30566185077483021952011-01-08T04:26:44.350-08:002011-01-08T04:26:44.350-08:00जब तलक सर पे हमारे छत सियासत की रहेगी
टूटना मुमकिन...जब तलक सर पे हमारे छत सियासत की रहेगी<br />टूटना मुमकिन नहीं होगा किसी दीवार का.<br /><br />मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का<br />सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.<br />देवेन्द्र जी इस ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें...<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4236588435915650588.post-19821068275852619352011-01-07T19:23:15.981-08:002011-01-07T19:23:15.981-08:00मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
सबपे ...मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का<br />सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.<br /><br />जब तलक सर पे हमारे छत सियासत की रहेगी<br />टूटना मुमकिन नहीं होगा किसी दीवार का.<br /><br />बहुत ख़ूब !<br />ख़ूबसूरत अश’आर !इस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.com