राई को पर्वत बनाकर देखना.
बात जितनी हो बढ़ाकर देखना.
जाने किसमें हो अहल्या का निवास
तुम हरेक पत्थर को छूकर देखना.
नाखुदा को भी पड़ा है बारहा
कतरे-कतरे में समंदर देखना.
आज जाने दो मुझे फुर्सत नहीं है
फिर कभी मुझसे उलझकर देखना.
लाख मत चाहो मगर तुमको पड़ेगा
पाओं को बनते हुए सर देखना.
----देवेंद्र गौतम
बात जितनी हो बढ़ाकर देखना.
जाने किसमें हो अहल्या का निवास
तुम हरेक पत्थर को छूकर देखना.
नाखुदा को भी पड़ा है बारहा
कतरे-कतरे में समंदर देखना.
आज जाने दो मुझे फुर्सत नहीं है
फिर कभी मुझसे उलझकर देखना.
लाख मत चाहो मगर तुमको पड़ेगा
पाओं को बनते हुए सर देखना.
----देवेंद्र गौतम