गिर्दाबे-खौफ दिल की नदी से हटा दिया.
जज़्बों की कश्तियों को किनारे लगा दिया.गुमराह जिंदगी ने मुझे और क्या दिया.
खुद ही मिली न मुझको ही मेरा पता दिया.
मुझको मेरी अना से भी ऊंचा उठा दिया.
फिर तीरे-तंज़ आपने मुझपर चला दिया.
ऐ अब्रे-बेमिसाल नवाजिश का शुक्रिया!
दिल पे ग़मो का तूने जो कुहरा घना दिया.
मैंने तो चंद रंग बिखेरे थे प्यार में
तुमने उन्हें तिलिस्मे-तमाशा बना दिया.
पूछा जो जिंदगी की हकीकत तो चुप रहे
इक मुश्ते खाक लेके हवा में उड़ा दिया.
अब उम्रभर भटकना है ग़ज़लों के दश्त में
तुमने ग़ज़ब किया मुझे शायर बना दिया.
जिस आईने ने रोज सवांरा बहुत उन्हें
उसको उन्हीं के अक्स ने धुंधला बना दिया.
----देवेंद्र गौतम