मौसम की बदहाली से.
पत्ते टूटे डाली से.
टप-टप आंखों से टपके
कुछ आंसू घड़ियाली से.
क्यों डरते हैं सात फलक
धरती की हरियाली से.
तुम भी फुर्सत में बैठे
हम भी खाली-खाली से.
दौलत जिसके पास वही
डरते हैं कंगाली से.
हर पौधा नाराज अभी
अपने बाग के माली से.
--देवेंद्र गौतम
पत्ते टूटे डाली से.
टप-टप आंखों से टपके
कुछ आंसू घड़ियाली से.
क्यों डरते हैं सात फलक
धरती की हरियाली से.
तुम भी फुर्सत में बैठे
हम भी खाली-खाली से.
दौलत जिसके पास वही
डरते हैं कंगाली से.
हर पौधा नाराज अभी
अपने बाग के माली से.
--देवेंद्र गौतम