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रविवार, 22 सितंबर 2013

पत्ते टूटे डाली से.

मौसम की बदहाली से.
पत्ते टूटे डाली से.

टप-टप आंखों से टपके
कुछ आंसू घड़ियाली से.

क्यों डरते हैं सात फलक
धरती की हरियाली से.

तुम भी फुर्सत में बैठे
हम भी खाली-खाली से.

दौलत जिसके पास वही
डरते हैं कंगाली से.

हर पौधा नाराज अभी
अपने बाग के माली से.

--देवेंद्र गौतम