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शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

उतर चुकें हैं सभी.....

उतर चुकें हैं सभी इस कदर जलालत पर.
कोई सलाख के पीछे कोई जमानत पर.

यहां किसी से उसूलों की बात मत करना
बिका हुआ है हरेक सख्स अपनी कीमत पर.

यकीन मानो कि सूरज पनाह मांगेगा
उतर गया कोई जर्रा अगर बगावत पर.

हुआ यही कि खुद अपना वजूद खो बैठा
वो जिसने दबदबा कायम किया था कुदरत पर.

अब तो इ-मेल पे होती है गुफ्तगू अपनी
 उडाता क्यों है कबूतर कोई मेरी छत पर.

किया भरोसा तो खुद अपने बाजुओं पे किया
हरेक जंग लड़ी हमने अपनी ताक़त पर.

लगा हुआ है अभी दांव पर हमारा वजूद
ये जंग जीतनी होगी किसी भी कीमत पर.


----देवेन्द्र गौतम