हक मिलता मांगने से तो लफड़ा नहीं करते.
हम तो तमाशबीं थे तमाशा नहीं करते.
लफ़्ज़ों के हेर-फेर का धंधा नहीं करते.
हम खुल के बोलते हैं कि पर्दा नहीं करते.
मेहमां बना के रखते हैं अपनी ज़मीन पर
हम अपने दुश्मनों को भी रुसवा नहीं करते.
जो बांटते हैं रौशनी सारे जहान को
जलते हुए दिये को बुझाया नहीं करते.
जो बात जिस जगह की है रखते हैं हम वहीं
हर बात हर किसी को बताया नहीं करते.
आईना हर किसी को दिखाते हैं हम, मगर
कीचड कभी किसी पे उछाला नहीं करते.
अपनी हदों को जानते हैं हम इसीलिए
मुट्ठी में आस्मां को समेटा नहीं करते.
---देवेंद्र गौतम