झील के पानी में आया है उबाल.
जाने कैसा होगा दरियाओं का हाल.
एक सिक्के के कई पहलू निकाल.
बाल की यूं भी निकल आती है खाल.
इस सदी में चैन से कोई नहीं
मेरा, तेरा, इसका, उसका एक हाल.
बाढ़ तो ऐसी कभी देखी न थी
और न देखा था कभी ऐसा अकाल.
बेबसी का आइना थी खामुशी
खुश्क आखों में थे कुछ भीगे सवाल.
आप प्यादा हैं, चलें एक-एक घर
हम चलेंगे ढाई घर की एक चाल.
तुमसे मिलने की ख़ुशी जाती रही
रह गया तुमसे बिछड़ने का मलाल.
जाने कैसा होगा दरियाओं का हाल.
एक सिक्के के कई पहलू निकाल.
बाल की यूं भी निकल आती है खाल.
इस सदी में चैन से कोई नहीं
मेरा, तेरा, इसका, उसका एक हाल.
बाढ़ तो ऐसी कभी देखी न थी
और न देखा था कभी ऐसा अकाल.
बेबसी का आइना थी खामुशी
खुश्क आखों में थे कुछ भीगे सवाल.
आप प्यादा हैं, चलें एक-एक घर
हम चलेंगे ढाई घर की एक चाल.
तुमसे मिलने की ख़ुशी जाती रही
रह गया तुमसे बिछड़ने का मलाल.
----देवेंद्र गौतम