अब अपने आप को पतझड़ न दे बहार न दे.
जुदाई सख्त हो, इतना किसी को प्यार न दे.करीब आके मेरे दिल को बेक़रार न कर
उतर न पाए जो आंखों में वो खुमार न दे.
जो अपनी शक्ल पे खुशियों का इश्तेहार न दे.
फरेब खा के भी इन खुदपरस्त लोगों को
कभी भी अपनी सदाकत का ऐतबार न दे.
मैं फूल हूं प ये कितना अजीब मौसम है
के मुझको शाख पे खिलने का इख़्तियार न दे.
मैं अपनी जिंदगी तन्हा गुज़ार सकता हूं
कदम-कदम प मुझे कोई गमगुसार न दे.
मैं बुझती शम्मा हूं हर लम्हा खौफ है मुझको
वो अपने ताके-नज़र से कहीं उतार न दे.
मैं अपने दौर का गर्दो-गुबार हूं गौतम
बिखर ही जाऊंगा अब और इंतेशार न दे.
----देवेंद्र गौतम