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शनिवार, 12 मार्च 2011

अब अपने आप को पतझड़ न दे......

अब अपने आप को पतझड़ न दे बहार न दे.
जुदाई सख्त हो, इतना किसी को प्यार न दे.


करीब आके मेरे दिल को बेक़रार न कर
उतर न पाए जो आंखों में वो खुमार न दे.

ग़मों के कर्ब से कैसे निजात पाए वो
जो अपनी शक्ल पे खुशियों का इश्तेहार न दे.


फरेब खा के भी इन खुदपरस्त लोगों को
कभी भी अपनी सदाकत का ऐतबार न दे.


मैं फूल हूं प ये कितना अजीब मौसम है
के मुझको शाख पे खिलने का इख़्तियार न दे.


मैं अपनी जिंदगी तन्हा गुज़ार सकता हूं
कदम-कदम प मुझे कोई गमगुसार न दे.


मैं बुझती शम्मा हूं हर लम्हा खौफ है मुझको
वो अपने ताके-नज़र से कहीं उतार न दे.


मैं अपने दौर का गर्दो-गुबार हूं गौतम
बिखर ही जाऊंगा अब और इंतेशार न दे.


----देवेंद्र गौतम