हर तरफ रंजो-ग़म का धुआं रह गया.
इक दहकती हुयी सी ज़मीं रह गयी
इक पिघलता हुआ आस्मां रह गया.
रंजिशों के कुहासे में लिपटा हुआ
उसकी यादों का कोहे-गरां रह गया.
नींद उड़ती गयी, ख्वाब बुझते गए
खुश्क आँखों का सूना मकां रह गया.
जिसकी खातिर भटकता फिरा चार-सू
वो मुझी से बहुत बदगुमां रह गया.
फिर उसी सम्त खंज़र हवा के चले
जिस तरफ जिन्दगी का निशां रह गया.
तीरगी का समंदर तआकुब में है
रौशनी का सफीना कहाँ रह गया.
दिल से गौतम हरेक शक्ल ओझल हुयी
उसकी यादों का फिर भी निशां रह गया.
----देवेन्द्र गौतम
ख्वाहिशों का अज़ब इम्तिहां रह गया.
इक दहकती हुयी सी ज़मीं रह गयी
इक पिघलता हुआ आस्मां रह गया.
रंजिशों के कुहासे में लिपटा हुआ
उसकी यादों का कोहे-गरां रह गया.
नींद उड़ती गयी, ख्वाब बुझते गए
खुश्क आँखों का सूना मकां रह गया.
जिसकी खातिर भटकता फिरा चार-सू
वो मुझी से बहुत बदगुमां रह गया.
फिर उसी सम्त खंज़र हवा के चले
जिस तरफ जिन्दगी का निशां रह गया.
तीरगी का समंदर तआकुब में है
रौशनी का सफीना कहाँ रह गया.
दिल से गौतम हरेक शक्ल ओझल हुयी
उसकी यादों का फिर भी निशां रह गया.
----देवेन्द्र गौतम