इन्हीं सड़कों से रग़बत थी, इन्हीं गलियों में डेरा था.
यही वो शह्र है जिसमें कभी अपना बसेरा था.
सफ़र में हम जहां ठहरे तो पिछला वक़्त याद आया
यहां तारीकिये-शब है वहां रौशन सबेरा था.
वहां जलती मशालें भी कहां तक काम आ पातीं
जहां हरसू खमोशी थी, जहां हरसू अंधेरा था.