किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़.. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़.
एक कत्आ
फूलों के पहलू में बैठे खंजर थे
चंदन के पेड़ों से लिपटे विषधर थे.
कितने जहरीले थे हमसे मत पूछो
जितना बाहर थे उतना ही अंदर थे.
-देवेंद्र गौतम