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बुधवार, 30 मार्च 2011

धुंध में गुम एक लंबे खौफ के.....

धुंध में गुम एक लंबे खौफ के पहरे में था.
उम्र भर मैं गर्दिशे-हालात के कमरे में था.

कांपते थे पांव और आंखें भी थीं सहमी हुईं 
हर कदम पर वो किसी अनजान से खतरे में था. 

ढूंढती फिरती थी दुनिया हर बड़े बाज़ार में  
वो गुहर आंखों से पोशीदा किसी कचरे में था.

मुन्तजिर जिसके लिए दिल में कई अरमान थे
उम्र भर वो तल्खिये-हालात के कुहरे में था.

गौर से देखा तो आंखें बंद कर लेनी पड़ीं
गम का एक सैलाब सा हंसते हुए चेहरे में था.
-----देवेंद्र गौतम