जाने किस उम्मीद के दर पे खड़ा था.
बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था.
कोई मंजिल थी, न कोई रास्ता था
उम्र भर यूं ही भटकता फिर रहा था.
वो सितारों का चलन बतला रहे थे
मैं हथेली की लकीरों से खफा था.
बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था.
कोई मंजिल थी, न कोई रास्ता था
उम्र भर यूं ही भटकता फिर रहा था.
वो सितारों का चलन बतला रहे थे
मैं हथेली की लकीरों से खफा था.