हम उनकी उंगलियों में थे कब से पड़े हुए.
कागज में दर्ज हो गए तो आंकड़े हुए.
ऊंची इमारतों में कहीं दफ्न हो गईं
वो गलियां जिनमें खेलके हम तुम बड़े हुए.
मुस्किल है कोई बीच का रस्ता निकल सके
दोनों तरफ के लोग हैं जिद पर अड़े हुए.
दरिया में थे तो हम सभी कश्ती की तरह थे
मिट्टी के पास आ गए तो फावड़े हुए.
हमने ज़मीं को सींच दिया अपने लहू से
कुछ लोग जंग जीत गए बिन लड़े हुए.
घुटनों में बल नहीं था मगर हौसला तो था
पूछो, हम अपने पांव पे कैसे खड़े हुए.
तख्ती पे था लिखा हुआ दस्तक न दे कोई
जैसे कि उनके दर पे हों हीरे जड़े हुए.
-देवेंद्र गौतम
कागज में दर्ज हो गए तो आंकड़े हुए.
ऊंची इमारतों में कहीं दफ्न हो गईं
वो गलियां जिनमें खेलके हम तुम बड़े हुए.
मुस्किल है कोई बीच का रस्ता निकल सके
दोनों तरफ के लोग हैं जिद पर अड़े हुए.
दरिया में थे तो हम सभी कश्ती की तरह थे
मिट्टी के पास आ गए तो फावड़े हुए.
हमने ज़मीं को सींच दिया अपने लहू से
कुछ लोग जंग जीत गए बिन लड़े हुए.
घुटनों में बल नहीं था मगर हौसला तो था
पूछो, हम अपने पांव पे कैसे खड़े हुए.
तख्ती पे था लिखा हुआ दस्तक न दे कोई
जैसे कि उनके दर पे हों हीरे जड़े हुए.
-देवेंद्र गौतम