काढ लेती फन अचानक और बस फुफकारती.
जिंदगी की जंग बोलो किस तरह वो हारती.
देवता होते हैं कैसे हमने जाना ही नहीं
बस उतारे जा रहे हैं हर किसी की आरती.
अपना चेहरा ढांपकर मैं भी गुजर जाता मगर
जिंदगी भर जिंदगी को जिंदगी धिक्कारती.
सांस के धागों को हम मर्ज़ी से अपनी खैंचते
मौत आती भी अगर तो बेसबब झख मारती.
रात अंधेरे को अपनी गोद में लेती गयी
सुब्ह की किरनों को आखिर किसलिए पुचकारती
पूछ मुझसे किसके अंदर जज़्ब है कितनी जलन
मैं कि लेता आ रहा हूं हर दीये की आरती.
--देवेंद्र गौतम
जिंदगी की जंग बोलो किस तरह वो हारती.
देवता होते हैं कैसे हमने जाना ही नहीं
बस उतारे जा रहे हैं हर किसी की आरती.
अपना चेहरा ढांपकर मैं भी गुजर जाता मगर
जिंदगी भर जिंदगी को जिंदगी धिक्कारती.
सांस के धागों को हम मर्ज़ी से अपनी खैंचते
मौत आती भी अगर तो बेसबब झख मारती.
रात अंधेरे को अपनी गोद में लेती गयी
सुब्ह की किरनों को आखिर किसलिए पुचकारती
पूछ मुझसे किसके अंदर जज़्ब है कितनी जलन
मैं कि लेता आ रहा हूं हर दीये की आरती.
--देवेंद्र गौतम