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शनिवार, 18 मई 2013

सबकुछ बिकता है संसार में जैसा हो

खूब सजा के रख बाजार में जैसा हो.
सबकुछ बिकता है संसार में जैसा हो.

पूजा की थाली में रक्खा जाता है
तुलसी का पत्ता आकार में जैसा हो.

उससे निस्बत रखनी है तो रखनी है
मिलने-जुलने बात विचार में जैसा हो.

घर की मुर्गी दाल बराबर होती है
मोल भले उसका बाजार में जैसा हो.

दिन के उजाले में मासूम ही दिखता है
उसका चेहरा अंधकार में जैसा हो.

उसपर कोई आंच नहीं आने देना
घर का बच्चा है व्यवहार में जैसा हो.

--देवेंद्र गौतम