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सोमवार, 7 मार्च 2011

देखना ढह जायेंगे बेरब्त टीले.....

देखना ढह जायेंगे बेरब्त टीले खुद-ब-खुद.
फिर सिमट जायेंगे सब बिखरे कबीले खुद-ब-खुद.


कुछ करम मेरे जुनूं का, कुछ नवाज़िश आपकी
हो गए ज़ज़्बात के  पैकर लचीले खुद-ब-खुद.


आपकी चाहत के बादल खुल के बरसे भी नहीं
ख्वाहिशों के हो गए पौधे सजीले खुद-ब-खुद.


इक जरा छलकी ही थी खुशरंग मौसम की शराब
तह-ब-तह खुलने लगे मंज़र नशीले खुद-ब-खुद.


तल्खिए-हालत से आंखें मेरी पथरा गयीं
अब तेरी यादों के होंगे जिस्म नीले खुद-ब-खुद.


बात क्या कहनी थी गौतम क्या लबों ने कह दिया
हो गए अल्फाज़ के पैकर नुकीले खुद-ब-खुद.


-----देवेंद्र गौतम