(पूर्वोत्तर की भगदड़ पर)
ये भगदड़ मचाई है जिस भी किसी ने
उसे ये पता है
कि तुम उसकी गर्दन नहीं नाप सकते
कि अब तुममे पहली सी कुव्वत नहीं है
कभी हाथ इतने थे लंबे तुम्हारे
कि उड़ते परिंदों के पर गिन रहे थे
कोई सात पर्दों में चाहे छुपा हो
पकड़ कर दिखाते थे
पिंजड़े का रस्ता
मगर अब वो दमखम
कहीं भी नहीं है
कि अब आस्मां क्या
ज़मीं तक
तुम्हारी पकड़ में नहीं है
वो चलती हुई ट्रेन से लोग फेंके गए तो
कहो तुम कहां थे
कहां थी तुम्हारी
सुरक्षा व्यवस्था
तुम्हीं अब बता दो
कि तुम पर भरोसा करे भी अगर तो
करे कोई कैसे....
---देवेंद्र गौतम