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शनिवार, 26 अगस्त 2017

बस मियां की दौड़ मस्जिद तक न हो.

चाल वो चलिए किसी को शक न हो.
बस मियां की दौड़ मस्जिद तक न हो.

सल्तनत आराम से चलती नहीं
सरफिरा जबतक कोई शासक न हो.

सांस लेने की इजाजत हो, भले
ज़िंदगी पर हर किसी का हक न हो.

खुश्क फूलों की अदावत के लिए
एक पत्थर हो मगर चकमक न हो.

रंग काला हो, कोई परवा नहीं
हाथ में उसके मगर मस्तक न हो.

तब तलक मत लाइए मैदान में
जब तलक वो दौड़ने लायक न हो.

-देवेंद्र गौतम