कुछ ज़मीं के और कुछ अम्बर के थे.
अक्स सारे डूबते मंज़र के थे.
कुछ इबादत का सिला मिलता न था
देवता जितने भी थे पत्थर के थे.
दिल में कुछ, होठों पे कुछ, चेहरे पे कुछ
किस कदर मक्कार हम अंदर के थे.
अक्स सारे डूबते मंज़र के थे.
कुछ इबादत का सिला मिलता न था
देवता जितने भी थे पत्थर के थे.
दिल में कुछ, होठों पे कुछ, चेहरे पे कुछ
किस कदर मक्कार हम अंदर के थे.