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गुरुवार, 26 जनवरी 2023

पुराने घर गिराए जा रहे हैं.

 पुराने घर गिराए जा रहे हैं.

निशां सारे मिटाए जा रहे हैं.

 

कई चेहरे छुपाए जा रहे हैं.

कई चेहरे दिखाए जा रहे हैं.

 

उन्हें हमसे गरज कुछ भी नहीं है

हमीं रिश्ता निभाए जा रहे हैं.

 

बजाहिर बात करते हैं गुलों की

मगर कांटे बिछाए जा रहे हैं.

 

वहीं पर जुर्म के धब्बे मिटेंगे

जहां मुजरिम बनाए जा रहे हैं.

 

भले ही कान पकते हों सभी के

वो अपनी धुन में गाए जा रहे हैं.

 

हमीं जयकार करते हैं हमेशा

हमीं पे जुल्म ढाए जा रहे हैं.


-देवेंद्र गौतम

सोमवार, 16 जनवरी 2023

एक चिनगारी की है दरकार जैसी भी सही

 

 फूस जलने के लिए तैयार जैसी भी सही.

एक चिनगारी की है दरकार जैसी भी सही

 

इसलिए तो चार पहिए की तलब उनको लगी

पोर्टिको को चाहिए थी कार जैसी भी सही.

 

हर सड़क पे इक सफर जारी रहे मेरे खुदा!

काफिला चलता रहे रफ्तार जैसी भी सही.

 

आखिरश वो वक्त के मलवे में दबते रह गए

तोड़ने निकले थे जो दीवार जैसी भी सही.


चार टुकड़ों में उसे करने का फन हमको पता

पास तो आए कोई तलवार जैसी भी सही.

 

धुंद में लिपटे सही मंजर मगर दिखते रहें

रौशनी कायम रहे बीमार जैसी भी सही.

 

कुछ दरारें ढूंढ लेगी और बहती ही रहेगी

रुक नहीं सकती नदी की धार जैसी भी सही.

-देवेंद्र गौतम

शनिवार, 14 जनवरी 2023

पारस छू ले लोहे से सोना बन जा.

 

तू पतझड़ में एक हरा पौधा बन जा.

पारस छू ले लोहे से सोना बन जा.

 

मौके मुश्किल से मिलते हैं, लाभ उठा

इस चेहरे को बदल नया चेहरा बन जा.

 

नई बिसातों से कुछ बात नहीं बनती

बिछी बिसातों के अंदर मोहरा बन जा.

 

बहुत दिनों तक दबा के रखे राज़ कई

अब सच के दरवाजे का पर्दा बन जा.

 

साये बदन से ज्यादा कीमत रखते हैं

जिसका बदन दिखे उसका साया बन जा

 

कल तक सबकी प्यास बुझाती ऐ नदिया! 

आज समंदर से मिलकर खारा बन जा.