कुल के अंदर कुल का दुश्मन होता है.
हर लंका में एक विभीषण होता है.
मन का सोना, तन का कुंदन होता है.
हर बूढ़े में थोडा बचपन होता है.
किसको संतुष्टि मिलती है क्या जाने
जब पुरखों का तर्पण-अर्पण होता है .
हर लंका में एक विभीषण होता है.
मन का सोना, तन का कुंदन होता है.
हर बूढ़े में थोडा बचपन होता है.
किसको संतुष्टि मिलती है क्या जाने
जब पुरखों का तर्पण-अर्पण होता है .