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बुधवार, 17 मार्च 2010

जेहनो-दिल में रेंगती हैं......

जेहनो-दिल में रेंगती हैं अनकही बातें बहुत.
दिन तो कट जातें हैं लेकिन सख्त हैं रातें बहुत.

तुम अभी से बदगुमां हो दोस्त! ये तो इब्तिदा है
जिंदगी की राह में होंगी अभी घातें बहुत.

दिल की पथरीली ज़मीं तो फिर भी खाली ही रही
सब्ज़ गालीचे बिछाने आयीं बरसातें बहुत.

कोई बतलाये कहां संजो के रखूं , क्या करूं
मेरी पेशानी पे हैं माजी की सौगातें बहुत.

उन दिनों भी उनसे इक दूरी सी रहती थी बनी
जिन दिनों आपस में होतीं थीं मुलाकातें बहुत.

देखना मैं बांधता हूं अब तखय्युल के तिलिस्म
तुम यहां दिखला चुके अपनी करामातें बहुत.


------देवेंद्र गौतम