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रविवार, 21 फ़रवरी 2010

हवा चुप है, फ़ज़ाओं में कसक.....

हवा चुप है, फ़ज़ाओं में कसक है, गौर से देखो.
ये किस मौसम के आने की धमक है? गौर से देखो.

बुलंदी और पस्ती एक ही सिक्के के दो पहलू
जमीं की गोद में सारा फलक है, गौर से देखो.

मैं सच कहता हूं, मैं सच के सिवा कुछ भी नहीं कहता
मेरे माथे पे चन्दन का तिलक है, गौर से देखो.

जेहानत चंद लोगों में कहीं महदूद रहती है
हरेक पत्थर में हीरे की चमक है, गौर से देखो.

कफ़न ओढ़े हुए खामोश जो लेटा है अर्थी में
अभी भी उसमें जीने की ललक है, गौर से देखो.

कहां ढूंढोगे तुम उसको जो हर जर्रे में रौशन है
हरेक इंसान में उसकी झलक है, गौर से देखो.

ग़मों की धूप में तपकर जो कजलाया बहुत गौतम
उसी चेहरे पे थोड़ा सा नमक है, गौर से देखो.


---देवेंद्र गौतम

हर कोई बेक़रार है बाबा!

हर कोई बेक़रार है बाबा!
जाने कैसा दयार है बाबा !

जिंदगी तार-तार है बाबा!
मौत का इंतज़ार है बाबा!

आओ मिलजुल के हम चुका डालें
कुछ जमीं का उधार है बाबा!

अब तो कुछ भी नज़र नहीं आता
कैसा गर्दो-गुबार है बाबा!

पूरे होंगे हमारे सपने भी
वक़्त का इंतज़ार है बाबा!

लोग कांटों से रंज रखते हैं
हमको फूलों से खार है बाबा!


-----देवेंद्र गौतम