हवा चुप है, फ़ज़ाओं में कसक है, गौर से देखो.
ये किस मौसम के आने की धमक है? गौर से देखो.
बुलंदी और पस्ती एक ही सिक्के के दो पहलू
जमीं की गोद में सारा फलक है, गौर से देखो.
मैं सच कहता हूं, मैं सच के सिवा कुछ भी नहीं कहता
मेरे माथे पे चन्दन का तिलक है, गौर से देखो.
जेहानत चंद लोगों में कहीं महदूद रहती है
हरेक पत्थर में हीरे की चमक है, गौर से देखो.
कफ़न ओढ़े हुए खामोश जो लेटा है अर्थी में
अभी भी उसमें जीने की ललक है, गौर से देखो.
कहां ढूंढोगे तुम उसको जो हर जर्रे में रौशन है
हरेक इंसान में उसकी झलक है, गौर से देखो.
ग़मों की धूप में तपकर जो कजलाया बहुत गौतम
उसी चेहरे पे थोड़ा सा नमक है, गौर से देखो.
---देवेंद्र गौतम
ये किस मौसम के आने की धमक है? गौर से देखो.
बुलंदी और पस्ती एक ही सिक्के के दो पहलू
जमीं की गोद में सारा फलक है, गौर से देखो.
मैं सच कहता हूं, मैं सच के सिवा कुछ भी नहीं कहता
मेरे माथे पे चन्दन का तिलक है, गौर से देखो.
जेहानत चंद लोगों में कहीं महदूद रहती है
हरेक पत्थर में हीरे की चमक है, गौर से देखो.
कफ़न ओढ़े हुए खामोश जो लेटा है अर्थी में
अभी भी उसमें जीने की ललक है, गौर से देखो.
कहां ढूंढोगे तुम उसको जो हर जर्रे में रौशन है
हरेक इंसान में उसकी झलक है, गौर से देखो.
ग़मों की धूप में तपकर जो कजलाया बहुत गौतम
उसी चेहरे पे थोड़ा सा नमक है, गौर से देखो.
---देवेंद्र गौतम