हर घड़ी ग़म से आशनाई है.
ज़िंदगी फिर भी रास आई है.
आस्मां तक पहुंच नहीं लेकिन
कुछ सितारों से आशनाई है.
अपने दुख-दर्द बांटता कैसे
उम्रभर की यही कमाई है.
ख्वाब में भी नज़र नहीं आता
नींद जिसने मेरी चुराई है.
अब बुझाने भी वही आएगा
आग जिस शख्स ने लगाई है.
काफिले सब भटक रहे हैं अब
रहनुमाओं की रहनुमाई है.
झूठ बोला है जब कभी मैंने
मेरी आवाज़ लड़खड़ाई है
कोई बंदा समझ नहीं पाया
क्या ख़ुदा और क्या खुदाई है.
-देवेंद्र गौतम
ज़िंदगी फिर भी रास आई है.
आस्मां तक पहुंच नहीं लेकिन
कुछ सितारों से आशनाई है.
अपने दुख-दर्द बांटता कैसे
उम्रभर की यही कमाई है.
ख्वाब में भी नज़र नहीं आता
नींद जिसने मेरी चुराई है.
अब बुझाने भी वही आएगा
आग जिस शख्स ने लगाई है.
काफिले सब भटक रहे हैं अब
रहनुमाओं की रहनुमाई है.
झूठ बोला है जब कभी मैंने
मेरी आवाज़ लड़खड़ाई है
कोई बंदा समझ नहीं पाया
क्या ख़ुदा और क्या खुदाई है.
-देवेंद्र गौतम