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शनिवार, 5 मार्च 2011

मेरी छत पर देर तक.....

मेरी छत पर देर तक बैठा रहा.
इक कबूतर खौफ में डूबा हुआ.


हमने दरिया से किनारा कर लिया.
अब कोई कश्ती न कोई नाखुदा.


झूट के पहलू में हम बैठे हुए
सुन रहे हैं सत्यनारायण कथा.


देर तक बाहर न रहिये, आजकल
शह्र का माहौल है बदला हुआ.


ऐसी तनहाई कभी देखी न थी
इतना सन्नाटा कभी छाया न था.


पांचतारा जिंदगी जीते हैं वो
आमलोगों से उन्हें क्या वास्ता.


ख्वाब में जो बन गए थे दफअतन
पूछ मत अब उन घरौंदों का पता.


इक न इक खिड़की किसी ने खोल दी
बंद जब हर एक दरवाज़ा हुआ.  


-----देवेन्द्र गौतम