मेरी छत पर देर तक बैठा रहा.
इक कबूतर खौफ में डूबा हुआ.
हमने दरिया से किनारा कर लिया.
अब कोई कश्ती न कोई नाखुदा.
झूट के पहलू में हम बैठे हुए
सुन रहे हैं सत्यनारायण कथा.
देर तक बाहर न रहिये, आजकल
शह्र का माहौल है बदला हुआ.
ऐसी तनहाई कभी देखी न थी
इतना सन्नाटा कभी छाया न था.
पांचतारा जिंदगी जीते हैं वो
आमलोगों से उन्हें क्या वास्ता.
ख्वाब में जो बन गए थे दफअतन
पूछ मत अब उन घरौंदों का पता.
-----देवेन्द्र गौतम
इक कबूतर खौफ में डूबा हुआ.
हमने दरिया से किनारा कर लिया.
अब कोई कश्ती न कोई नाखुदा.
झूट के पहलू में हम बैठे हुए
सुन रहे हैं सत्यनारायण कथा.
देर तक बाहर न रहिये, आजकल
शह्र का माहौल है बदला हुआ.
ऐसी तनहाई कभी देखी न थी
इतना सन्नाटा कभी छाया न था.
पांचतारा जिंदगी जीते हैं वो
आमलोगों से उन्हें क्या वास्ता.
ख्वाब में जो बन गए थे दफअतन
पूछ मत अब उन घरौंदों का पता.
इक न इक खिड़की किसी ने खोल दी
बंद जब हर एक दरवाज़ा हुआ.
-----देवेन्द्र गौतम