कोई क्या है, पता चलता है कुछ भी ?
किसी की शक्ल पे लिक्खा है कुछ भी?
गवाही कौन देगा अब बताओ?
किसी ने भी नहीं देखा है कुछ भी.
अगर ताक़त है तो कुछ भी उठा लो
कि मांगे से नहीं मिलता है कुछ भी.
खयालों के उफक पे खामुशी है
न उगता है न अब ढलता है कुछ भी.
सरो-सामां बहुत है घर में लेकिन
सलीके से नहीं रक्खा है कुछ भी.
किसी की शक्ल पे लिक्खा है कुछ भी?
गवाही कौन देगा अब बताओ?
किसी ने भी नहीं देखा है कुछ भी.
अगर ताक़त है तो कुछ भी उठा लो
कि मांगे से नहीं मिलता है कुछ भी.
खयालों के उफक पे खामुशी है
न उगता है न अब ढलता है कुछ भी.
सरो-सामां बहुत है घर में लेकिन
सलीके से नहीं रक्खा है कुछ भी.
----देवेंद्र गौतम