कुछ नजाकत और बढ़ जाती है उसकी चाल में.
जब
फंसी होती है चिड़िया इक शिकारी जाल में.
जा
चुका है जो न लौटेगा किसी भी हाल में
क्या
नदी वापस कभी आती है अपने ताल में?
जब
मुकर्रर थी सज़ा सूली हमें चढ़ना ही था
फिर
सफाई किसलिए देते किसी भी हाल में.
तितलियां,
भौंरे, परिंदे, पेड़-पौधे और गुल
जाने
क्या-क्या है फंसा इस बागवां के जाल में.
हाथ से
निकली हुई खुशियां हमें वापस करे
ऐसा इक
लम्हा बना होगा हजारों साल में.
इक
शिकारी ने बिछा रखी थीं बारूदी सुरंगें
शेर को
छुपना पड़ा था मेमने की खाल में.
वो
किसी के हाथ का हथियार बन जाएं कहीं
इसलिए
तो धार भी देते नहीं हैं ढाल में.
एक
झोंके में तअल्लुक पेड़ से तोड़ा मगर
खुश्क
पत्तों का भरोसा टिक रहा था डाल में.