ज़ख्म यादों का फिर हरा होगा.
अबके सावन में और क्या होगा.जो जहां है वहीं रुका होगा.
और आगे की सोचता होगा.
मेरे ग़म से भी आशना होगा.
गर हकीकत में वो खुदा होगा.
खुदपरस्ती बहुत ज़रूरी है
अपने बारे में सोचना होगा.
धूप मुझमें समा गयी होगी
आज सूरज नहीं ढला होगा.
एक सहरा है, एक समंदर है
आज दोनों का सामना होगा.
मेरे कहने में, तेरे सुनने में
चंद लफ़्ज़ों का फासला होगा.
कौन मुन्सिफ है, कौन मुजरिम है
आज..और आज फैसला होगा.
चाहे जैसा भी जाल हो गौतम
बच निकलने का रास्ता होगा.
--देवेंद्र गौतम