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गुरुवार, 4 नवंबर 2021

ग़ज़लः साहब की हर बात हवाई होती है

 

हर बंदी के नाम रिहाई होती है.

साहब की हर बात हवाई होती है.

 

पहले चोंच लड़ाते हैं इक दूजे से

फिर आपस में हाथापाई होती है.

 

कौन गरीबों की फरियाद सुने आखिर

दौलतवालों की सुनवाई होती है.

 

एक-एक कर सब बाराती लौट चुके

देखें कब दुल्हन की विदाई होती है.

 

ऐसे लम्हे भी आते हैं जीवन में

ऊपर पर्वत नीचे खाई होती है.

 

बाहर-बाहर ईमां की बातें करते

अंदर-अंदर खूब कमाई होती है.

-देवेंद्र गौतम

 

 

गुरुवार, 6 मई 2021

हुकूमत में लचीलेपन की भी दरकार होती है

 

सभी की बात सुनती हो, वही सरकार होती है.

हुकूमत में लचीलेपन की भी दरकार होती है.

 

सियासत के लिए बर्बाद कर देते हो क्यों आखिर

बड़ी मुश्किल से कोई नस्ल जो तैयार होती है.

 

खुली आंखों से जो तसवीर दिखती है निगाहों को

वही तो बंद आंखों में कहीं साकार होती है.

 

हवेली दर हवेली राख का छिड़काव कर जाए

वो चिनगारी सही माने में तब अंगार होती है.

 

हवा सबके घरों की दास्तां कहती है लोगों से

मगर अपनी हक़ीकत से कहां दो चार होती है.

 

कई सपने हमारी नींद को झकझोर जाते हैं

हमारी आंख मुश्किल से मगर बेदार होती है

-देवेंद्र गौतम