(मित्रों ! यह इस ब्लॉग की 100 वीं पोस्ट है. दो नज्मों और एक कत्ते को छोड़ दें तो अभी तक इसमें ज्यादातर ग़ज़लें ही पोस्ट की गयी हैं. भाई राजेंद्र स्वर्णकार के इसरार पर जनवरी 2011 में जब मैंने इस ब्लॉग पर नियमित पोस्ट डालनी शुरू की तो उस वक़्त तक मात्र 289 पेज व्यूवर थे. सात महीने में आज यह संख्या 6331 हो चुकी है. फोलोवर भी दूने से ज्यादा बढे हैं. आपलोगों के स्नेह की बदौलत ही यह संभव हुआ है. अब इसमें साहित्य की अन्य विधाओं का भी समावेश किया जाना चाहिए या इसी रूप में आगे का सफ़र जारी रखना चाहिए इसपर विचार कर रहा हूं. मैं इसपर आपलोगों के विचार भी जानना चाहूंगा. )
जिसे खोया उसी को पा रहा हूं.
गुज़िश्ता वक़्त को दुहरा रहा हूं.
छुपाये दिल में अपनी तिश्नगी को
समंदर की तरह लहरा रहा हूं.