किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़.. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़.
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शनिवार, 4 जून 2011
हवा में उड़ रहा है आशियाना
हवा में उड़ रहा है आशियाना.
परिंदे का नहीं कोई ठिकाना.
हमेशा चूक हो जाती है हमसे
सही लगता नहीं कोई निशाना.
अभी सहरा में लाना है समंदर
अभी पत्थर पे है सब्ज़ा उगाना.
जिसे आंखों ने देखा सच वही है
किसी की बात में बिल्कुल न आना.
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