समर्थक

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

खुश्क पत्तों सा बिखर जाना है

हर तलातुम से गुज़र जाना है
दिल के दरिया में उतर जाना है
ज़िंदा रहना है कि मर जाना है
‘आज हर हद से गुज़र जाना है’
मौत की यार हक़ीक़त है यही
बस ये अहसास का मर जाना है
पेड़ से टूट गए हैं जैसे
खुश्क पत्तों सा बिखर जाना है
सब ज़मींदोज़ उभर आये हैं
अब दुआओं का असर जाना है
वादा करना तो अदा है उनकी
वक़्त आने पे मुकर जाना है
सर खपाने से नहीं होता कुछ
जो गुज़रना है गुज़र जाना है
वक़्त के आइना दिखलाते ही
रंग चेहरे का उतर जाना है
हम तो आवारा हैं ‘गौतम’ साहब
आप कहिये कि किधर जाना है
-देवेन्द्र गौतम