अहसास के सीने में जो गिर्दाबनुमा था.
ज़ज्बों की नदी में वही सैलाबनुमा था.
जलवा तेरा जैसे परे-सुर्खाबनुमा था.
आया था सरे-चश्म मगर ख्वाबनुमा था.
सहरा में घनी प्यास लिए लोग खड़े थे
कुछ दूर झलकता हुआ वो आबनुमा था.
मिलता था वही रात को ख्वाबों की गुफा में
जो दिन की घनी धूप में नायाबनुमा था.
हल्का सा तवारुफ़ था तो थोड़ी सी मुलाक़ात
वो अजनवी जैसा था पर अह्बाबनुमा था.
आवाज़ थी उलझी हुई गौतम के गले में
सीने में अज़ब खौफ का जह्राबनुमा था.
----देवेन्द्र गौतम
ज़ज्बों की नदी में वही सैलाबनुमा था.
जलवा तेरा जैसे परे-सुर्खाबनुमा था.
आया था सरे-चश्म मगर ख्वाबनुमा था.
सहरा में घनी प्यास लिए लोग खड़े थे
कुछ दूर झलकता हुआ वो आबनुमा था.
मिलता था वही रात को ख्वाबों की गुफा में
जो दिन की घनी धूप में नायाबनुमा था.
हल्का सा तवारुफ़ था तो थोड़ी सी मुलाक़ात
वो अजनवी जैसा था पर अह्बाबनुमा था.
आवाज़ थी उलझी हुई गौतम के गले में
सीने में अज़ब खौफ का जह्राबनुमा था.
----देवेन्द्र गौतम