हरेक लफ्ज़ में नौहा है बेज़ुबानी का.
कहां से लाओगे उन्वां मेरी कहानी का.
बहुत असर हुआ पौधों की बेज़ुबानी का.
के राज़ खुल गया मौसम की हुक्मरानी का.
तुम्हें भी हर कोई खाना-बदोश कहता है
हमारे सर पे भी साया है लामकानी का.
खुली जब आंख तो बिखरी थी धूप चारो तरफ
अजीब रंग था ख्वाबों की सायबानी का.
न हमको तल्खि-ये-इमरोज़ से शिकायत है
न इंतज़ार है फर्दा की गुलफिशानी का.
ज़बां से गर्द बिखरने लगे तो चुप रहना
के इसके बाद तो आलम है बदजुबानी का.
बहुत गुरूर था अपने वजूद पर हमको
वजूद क्या था बस इक बुलबुला था पानी का.
ख़ुदा ने जिनको अता की हैं रहमतें गौतम
उन्हें भी खौफ नहीं कहरे-आसमानी का.
कहां से लाओगे उन्वां मेरी कहानी का.
बहुत असर हुआ पौधों की बेज़ुबानी का.
के राज़ खुल गया मौसम की हुक्मरानी का.
तुम्हें भी हर कोई खाना-बदोश कहता है
हमारे सर पे भी साया है लामकानी का.
खुली जब आंख तो बिखरी थी धूप चारो तरफ
अजीब रंग था ख्वाबों की सायबानी का.
न हमको तल्खि-ये-इमरोज़ से शिकायत है
न इंतज़ार है फर्दा की गुलफिशानी का.
ज़बां से गर्द बिखरने लगे तो चुप रहना
के इसके बाद तो आलम है बदजुबानी का.
बहुत गुरूर था अपने वजूद पर हमको
वजूद क्या था बस इक बुलबुला था पानी का.
ख़ुदा ने जिनको अता की हैं रहमतें गौतम
उन्हें भी खौफ नहीं कहरे-आसमानी का.
-----देवेंद्र गौतम