कदम- दर-कदम कुछ नसीहत रही है.
बुजुर्गों की हमपे इनायत रही है.
मयस्सर नहीं उनको धुंधली किरन भी
न तहज़ीब ढूंढो कि इन बस्तियों में
न सूरत रही है न सीरत रही है.
कभी बैठकर राह तकते किसी की
मगर इतनी कब मुझको फुर्सत रही है.
घरोंदे बनाकर उन्हें तोड़ देना
यही मेरी अबतक की फितरत रही है.
हवाओं का क्या है कभी रुख बदल दें
हवाओं पे किसकी हुकूमत रही है.
----देवेंद्र गौतम
बुजुर्गों की हमपे इनायत रही है.
मयस्सर नहीं उनको धुंधली किरन भी
जिन्हें रौशनी की जरूरत रही है.
न तहज़ीब ढूंढो कि इन बस्तियों में
न सूरत रही है न सीरत रही है.
कभी बैठकर राह तकते किसी की
मगर इतनी कब मुझको फुर्सत रही है.
घरोंदे बनाकर उन्हें तोड़ देना
यही मेरी अबतक की फितरत रही है.
हवाओं का क्या है कभी रुख बदल दें
हवाओं पे किसकी हुकूमत रही है.
----देवेंद्र गौतम