किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़.. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़.
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गुरुवार, 7 अप्रैल 2011
ज़मीं से दूर..बहुत दूर....
ज़मीं से दूर..बहुत दूर..आसमान में है.
मेरे जुनूं का परिंदा अभी उड़ान में है.
कहां से लायें अंधेरों से जूझने का रसूख
हमारे वक़्त का सूरज अभी ढलान में है.
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वटवृक्ष: गज़ल
रश्मि प्रभा जी ने गज़लगंगा की एक ग़ज़ल अपने चर्चित ब्लॉग वटवृक्ष में पोस्ट की. उन्हें हार्दिक धन्यवाद! उनका ब्लॉग देखने के लिए नीचे क्लिक करें--
वटवृक्ष: गज़ल
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