कितना भी लाल पीला हो सोहबत नहीं करते.
हम डूबते सूरज की इबादत नहीं करते.
इस दर्ज़ा तो ऐ दोस्त! हिमाक़त नहीं करते.
सूरज से जुगनुओं की तिजारत नहीं करते.
इतना दबे हुए हैं किताबों के बोझ से
इस दौर के बच्चे भी शरारत नहीं करते.
रह जाते हैं सब खूबियां अपनी समेटकर
जो लोग अपने फन की तिजारत नहीं करते.
जो लोग आप लिखते हैं किस्मत की इबारत
हांथों की लकीरों की शिकायत नहीं करते.
बागी जिन्हें समझती है दुनिया वो दरअसल
मिल-बांट के खाते हैं बगावत नहीं करते.
फिर क्यों न मानते वो हमारी हरेक बात
हम कर के दिखाते हैं नसीहत नहीं करते.
----देवेंद्र गौतम
हम डूबते सूरज की इबादत नहीं करते.
इस दर्ज़ा तो ऐ दोस्त! हिमाक़त नहीं करते.
सूरज से जुगनुओं की तिजारत नहीं करते.
इतना दबे हुए हैं किताबों के बोझ से
इस दौर के बच्चे भी शरारत नहीं करते.
रह जाते हैं सब खूबियां अपनी समेटकर
जो लोग अपने फन की तिजारत नहीं करते.
जो लोग आप लिखते हैं किस्मत की इबारत
हांथों की लकीरों की शिकायत नहीं करते.
बागी जिन्हें समझती है दुनिया वो दरअसल
मिल-बांट के खाते हैं बगावत नहीं करते.
फिर क्यों न मानते वो हमारी हरेक बात
हम कर के दिखाते हैं नसीहत नहीं करते.
----देवेंद्र गौतम