किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़.. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़.
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शनिवार, 9 अप्रैल 2011
एक कत्ता
(जंतर-मंतर के नाम)
दो कदम पीछे हटे हैं वो अभी
एक कदम आगे निकलने के लिए.
ये सियासत का ही एक अंदाज़ है
झुक गए हैं और तनने के लिए.
-----देवेंद्र गौतम
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