किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़.. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़.
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शनिवार, 19 नवंबर 2011
अपनी-अपनी जिद पे अड़े थे
अपनी-अपनी जिद पे अड़े थे.
इसीलिए हम-मिल न सके थे.
एक अजायब घर था, जिसमें
कुछ अंधे थे, कुछ बहरे थे.
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