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गुरुवार, 29 मार्च 2012

खता क्या है मेरी इतना बता दे


खता क्या है मेरी इतना बता दे.
फिर इसके बाद जो चाहे सजा दे.

अगर जिन्दा हूं तो जीने दे मुझको
अगर मुर्दा हूं तो कांधा लगा दे.

हरेक जानिब है चट्टानों का घेरा
निकलने का कोई तो रास्ता दे.

गुरुवार, 22 मार्च 2012

आदमी के भेष में शैतान था


आदमी के भेष में शैतान था.
हम समझते थे कि वो भगवान था.

एक-इक अक्षर का उसको ज्ञान था.
उसके घर में वेद था, कुरआन था.

सख्त था बाहर की दुनिया का सफ़र
घर की चौखट लांघना आसान था.

गुरुवार, 15 मार्च 2012

एक कत्ता


(एक ऐसे बच्चे के नाम जिसे छः माह पहले उसकी मां एक नर्सिंग होम में जन्म देकर फरार हो गयी थी और जो बहुरूपिया ब्लॉग के संचालक पवन श्रीवास्तव के घर पर पल रहा है. पवन जी के भाई अशोक मानव ने उसे गोद लिया है.)


अपने पाओं पे खड़ा होने दो.
घर का बच्चा है, बड़ा होने दो.
प्यास दुनिया की ये बुझाएगा
कच्ची मिटटी है घड़ा होने दो.

------देवेंद्र गौतम

गुरुवार, 8 मार्च 2012

सिलसिले इस पार से उस पार थे

सिलसिले इस पार से उस पार थे.
हम नदी थे या नदी की धार थे?

क्या हवेली की बुलंदी ढूंढ़ते
हम सभी ढहती हुई दीवार थे.

उसके चेहरे पर मुखौटे थे बहुत
मेरे अंदर भी कई किरदार थे.

मैं अकेला तो नहीं था शह्र में
मेरे जैसे और भी दो-चार थे.

खौफ दरिया का न तूफानों का था
नाव के अंदर कई पतवार थे.

तुम इबारत थे पुराने दौर के
हम बदलते वक़्त के अखबार थे.

-----देवेंद्र गौतम