वक़्त की आंच में हर लम्हा पिघलती गलियां.
हमसे बाबिस्ता हैं तहजीब की बूढी गलियां.
चांद-तारों की चमक आंखों में भरने वाले!
देख कचरे में पड़ी खाक में मिलती गलियां.
आते-जाते रहे हर सम्त से ख्वाबों के नबी
फिर भी चौंकी न कभी नींद की मारी गलियां.
हर तरफ प्यास का सहरा है कहां जाओगे
हर तरफ तुमको मिलेंगी युंही जलती गलियां.
आ! सिखा देंगी भटकने का सलीका तुमको
मेरे अहसास की सड़कों से निकलती गलियां.
सर्द आहों की फ़ज़ा और अंधेरों का सफ़र
सो गए लोग मगर आँख झपकती गलियां.
मन के मोती में चुभी सुई बिना धागे की
याद जब आयीं तेरे साथ सवंरती गलियां.
आओ देखो न! सदा देतीं हैं किसको गौतम
दिल के अंदाज़ से रह-रहके धड़कती गलियां.
----देवेंद्र गौतम
----देवेंद्र गौतम