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बुधवार, 21 अप्रैल 2010

देर तक देखा न कर

देर तक देखा न कर.
आईना मैला न कर.


बेचकर अपनी खुदी
कद बहुत ऊंचा न कर.


बांध तारीफों के पुल
रेत को दरिया न कर.


पाओं जब लम्बे नहीं
रास्ता छोटा न कर.


तू हवा, तूफ़ान मैं
सामना मेरा न कर.


---देवेंद्र गौतम 

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

वक़्त के औराक़ पे.....

वक़्त के औराक़ पे हर्फे-गुजिश्ता हो गया.
भूल जा मुझको कि मैं माजी का किस्सा हो गया.


मैं कि तितली की तरह लपका था फूलों की तरफ
और कांटों से उलझकर पर-शिकस्ता हो गया.


जिसपे सूरज की कोई आवाज़ पहुंची ही नहीं
मैं अंधेरों का वही सूना जज़ीरा हो गया.


एक दिन जलते हुए सूरज से आंखें लड़ गयीं
फिर मेरे चारो तरफ रौशन अंधेरा हो गया.


जाने किस टूटे हुए रिश्ते की याद आने लगी
जब कोई बारात निकली मैं फ़सुर्दा हो गया.


----देवेंद्र गौतम