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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

ढलती हुई यादों के दरो-बाम.....

ढलती हुई यादों के दरो-बाम लिखेंगे.
हर सम्त अँधेरे में तेरा नाम लिखेंगे.

यादों के गुलिस्तां में तसव्वुर के कलम से
सरसब्ज़ दरख्तों पे तेरा नाम लिखेंगे.


हर मोड़ पे हालात के तारीक वरक़ पर
जो कुछ भी कहे गर्दिशे-अय्याम लिखेंगे.


आंखों में अभी खौफ ज़माने का बहुत है
सीने में लरजते हुए पैगाम लिखेंगे.


जब सर पे मेरे ग़म की कड़ी धूप चढ़ेगी
ढलते हुए सूरज का हम अंजाम लिखेंगे.


रातों को अगर नींद न आये तो उसे हम
उजड़े हुए ख्वाबों की घनी शाम लिखेंगे.


जिस प्यार ने जीने का सलीका हमें बख्शा
उस प्यार के गीतों को सरे-आम लिखेंगे.


इस बार ख्यालों के जुनूंखेज़ वरक पर
हम अक्ल से मांगे हुए इल्जाम लिखेंगे.


फिर वक़्त का तारीक  वरक़ चमकेगा गौतम
इस सुब्ह को भी लोग सियहफाम लिखेंगे.


-----देवेंद्र गौतम