उनका
सूरज ढल रहा है.
चक्र
उल्टा चल रहा है.
खटमलों
का एक कुनबा
कुर्सियों
में पल रहा है.
आईने
की आंख को भी
एक
चेहरा खल रहा है.
मुट्ठियों
में राख लेकर
हाथ
अपने मल रहा है.
आग
से जिसने भी खेला
घर
उसी का जल रहा है.
इक
तरफ होठों पे पपड़ी
इक
तरफ जल-थल रहा है.
भाड़
में जाए ये दुनिया
काम
अपना चल रहा है.